सोमवार, मार्च 18

गहराई में जा सागर के

गहराई में जा सागर के 


हँसना व हँसाना यारों 

 अपना शौक पुराना है,

आज जिसे देखा खिलते 

कल उसको मुरझाना है !

 

जाने कब से दिल-दुनिया 

ख़ुद के दुश्मन बने हुए, 

बड़े जतन कर के इनको 

तम से हमें जगाना है !

 

बादल नहीं थके अब भी  

कब से पानी टपक रहा ,

आसमान की चादर में 

 हर सुराख़ भरवाना है !


सूख गये पोखर-सरवर  

 दिल धरती का अब भी नम, 

उसके आँचल से लग फिर 

जग की प्यास बुझाना है !


दर्द छुपा सुख  के पीछे  

 संग फूल के ज्यों कंटक, 

किसी तरह  हर बंदे को 

 माया से भरमाना है !


ऊपर ही सोना भीतर 

पीतल, पर उलटा भी है 

गहराई में  सागर के  

सच्चा मोती पाना है !


बुधवार, मार्च 13

जीवन

जीवन 

इतनी शिद्दत से जीना होगा 

जैसे फूट पडती है कोंपल कोई

सीमेंट की परत को भेदकर,

ऊर्जा बही चली आती है जलधार में

चीर कर सीना पर्वतों का 

या उमड़-घुमड़ बरसती है 

बदली सावन की !


न कि किसी जलते-बुझते 

दीप की मानिंद 

या अलसायी सी 

छिछली नदी की तरह पड़े रहें

 और बीत जाये जीवन... का यह क्रम

लिए जाए मृत्यु के द्वार पर

 खड़े होना पड़े सिर झुकाए

देवता के चरणों में चढ़ाने लायक

फूल तो बनना ही होगा

इतनी शिद्दत से जीना होगा…!


गुरुवार, मार्च 7

राह अब भी बहुत शेष है

विश्व महिला दिवस पर 


राह अब भी बहुत शेष है 


बनने लगे हैं कितने ही बिंब 

मन की आँखों के सम्मुख 

छा जाते बन प्रतिबिंब 

कौंध जाते कितने ही ख़्याल हैं 

आख़िर यह विश्व की 

आधी आबादी का सवाल है 

ऐसा लगता है दुनिया

एक पहिये पर ही 

आज तक चलती रही है  

तभी शायद इधर-उधर 

 लुढ़क सी रही है 

किंतु अब समाचार सुनें ताजे 

घुट-घुट कर जीने के दिन गये 

 उठने लगी हैं आवाजें  

उन्हें भी भागीदार बनाओ 

बराबरी का हक़ दिलाओ 

कम से कम जीने तो दो 

बुनियादी अधिकारों को 

अब बन रही है ऐसी दुनिया 

जहाँ पक्षपात नहीं होगा 

 मौक़ा मिलेगा हरेक को

 हुनर दिखाने का

सजग है आज की महिला 

कि वह शक्ति का पुंज  है 

और होकर रहेगी वह 

जो होना चाहती है 

उसे अनुसरण मात्र नहीं करना है 

अपने सपनों में स्वयं रंग भरना है 

इसलिए आज का दिन विशेष है 

पर  राह अब भी बहुत शेष है 

हाशिये पर खड़ी हैं अनगिनत महिलाएँ 

वे भी आगे आयें, ताकि  

 युद्ध में झोंकी जा रही है जो दुनिया

 फिर से हँसे और गुनगुनाए !


बुधवार, मार्च 6

अपना-अपना स्वप्न देखते

अपना-अपना स्वप्न देखते 


एक चक्र सम सारा जीवन 

जन्म-मरण पर जो अवलंबित,

एक ऊर्जा अवनरत  स्पंदित 

अविचल, निर्मल सदा अखंडित ! 


एक बिंदु से शुरू हुआ था 

वहीं लौट कर फिर जाता है, 

किन्तु पुनः पाकर नव जीवन

नए कलेवर में आता है ! 


पंछी, मौसम, जीव सभी तो 

इसी चक्र से बँधे हुए हैं , 

अपना-अपना स्वप्न देखते 

नयन सभी के मुँदे  हुए हैं !


हुई शाम तो लगीं अजानें  

घंटनाद कहीं जलता धूप  ,

कहीं आरती, वन्दन, अर्चन 

कहीं सजा महा सुंदर रूप !


एक दिवस अब खो जायेगा 

समा काल के भीषण मुख में, 

कभी लौट कर न आयेगा 

बीता चाहे सुख में दुःख में ! 


एक रात्रि होगी अन्तिम भी 

तन का दीपक बुझा जा रहा, 

यही गगन तब भी तो होगा 

पल-पल करते समय जा रहा !


सोमवार, मार्च 4

पराधीनता

पराधीनता 


उस दिन वह बहुत रोयी थी, आँगन में बैठकर ज़ोर से आवाज़ निकालते हुए, जैसे कोई उसका दिल चीर कर ले जा रहा हो। शायद उसकी चीख में उन तमाम औरतों की आवाज़ भी मिली हुई थी जिन्हें सदियों से दबाया जाता रहा था। उनकी माएँ, दादियाँ, परदादियाँ और जानी-अनजानी दूर देशों की वे औरतें, जिन्हें अपने सपनों को जीने का हक़ नहीं दिया जाता है। उसने जिस पर इतना भरोसा किया था, जिसे अपना सर्वस्व माना था, जिसे ख़ुद को भुलाकर, टूटकर प्यार किया था। उसकी एक बात उसे किस कदर चुभ गई थी। जब उसने कहा था, यदि उसने उसकी इच्छा के विरुद्ध घर से बाहर कदम रखा तो वह उसे छोड़ कर चला जाएगा, इतना सुनते ही जैसे उसके सोचने समझने की शक्ति ही जाती रही थी। उसने यह भी नहीं सोचा, उसकी नौकरी है, घर है, बच्चा है, वह कैसे जा सकता है ? ये शब्द उसके मुख से निकले ही कैसे, बस यही बात उसे तीर की तरह चुभ रही थी।वह उसे चुप कराने भी आया, पर दर्द इतना बड़ा था कि समय ही उसका मलहम बन सकता था। कुछ देर बाद ही वह अपने आप ही शांत हो गई थी, उसके मन ने एक निर्णय ले लिया था, जैसे वह उसे छोड़ने की बात सोच सकता था, तो उसे भी अपना आश्रय कहीं और खोजना होगा, ईश्वर के अतिरिक्त कोई उसका आश्रय नहीं बन सकता था। शाम तक मन शांत हो गया और अगके दिन तक वह सामान्य भी हो गई थी, पर भीतर बहुत कुछ बदल चुका था। वह जो आँख बंद करके उसके पीछे चली जा रही थी, नियति ने उसे जैसे चौंका दिया था। उस दिन के बाद वह अपने भीतर देखने लगी, जहॉं मोह के जाल बहुत घने थे, जिन्हें उसे काटना था। उसने मन ही मन कहा, आज से मैंने भी तुम्हें मुक्त किया।पहले वह उसकी एक क्षण की चुप्पी से घबरा जाती थी, जैसे उसकी जान उसमें अटकी थी। अब उसे अपने पैरों पर खड़ा होना था, ये पैर बाहर नहीं थे, मन में थे।मन जो पहले उसका इतना आश्रित बन चुका था, उसे स्वयं पर निर्भर करना था। कोई भी संबंध तभी दुख का कारण बनता है जब दो में से कोई एक हद से ज़्यादा दूसरे पर आश्रित हो। वह जैसे उसकी आँख़ों से जगत को देखती आयी थी। उसकी अपनी कोई पहचान ही नहीं थी। उसका एकमात्र काम था, उसके इशारों पर चलना, और यह भूमिका उसने ख़ुद चुनी थी, अपने पूरे होश-हवास में, वह इसे प्रेम की पराकाष्ठा समझती थी। पर अब सब कुछ बदल रहा था, आज सोचती है तो उसे लगता है, उस दिन का वह रुदन उसके नये जीवन का हास्य बनाकर आया था। अब वह उसके बिना भी मुस्कुराना सीखने लगी थी। उनके मध्य कोई कटुता नहीं थी, शायद संबंध परिपक्व हो रहे थे। शायद वे बड़े हो रहे थे। अपनी ख़ुशी के लिए किसी और पर निर्भर रहना उसकी पराधीनता स्वीकारना ही तो है। इसे प्रेम का नाम देना कितनी बड़ी ग़लतफ़हमी है। उसने यह बात सीख ली थी और अब अपने लिए छोटे-छोटे ही सही कुछ निर्णय ख़ुद लेना सीख रही थी।   


शनिवार, मार्च 2

शुरू हुआ मार्च का मार्च

शुरू हुआ मार्च का मार्च 

यह नव ऋतु के आगमन का काल है 

जब पकड़ ढीली हो गई है जाड़ों की 

अंगड़ाई ले रही हैं नई कोंपलें

 वृक्षों की डालियों पर 

शीत निद्रा से जागने लगे हैं जंतु 

जो धरा के गर्भ में सोये थे

खिलने लगे हैं डैफ़ोडिल भी 

हज़ारों क़िस्म के फूलों के साथ 

आने को है महा शिवरात्रि का पर्व 

बढ़ाने महिला दिवस का गौरव 

इसी माह को जाता है श्रेय 

रमज़ान के आगाज़ का  

फिर आएगा झूमता गाता 

रंगीन पर्व मदमाती होली का 

कहते हैं मंगल से जुड़ा है 

गुलाबी रंगत लिए यह महीना 

जिसमें आकाश का रंग है नीला  

जंगल और हरे हो गये हैं 

पक्षी लौटने लगे हैं अपने ठिकानों पर 

पता है न,  मनाते हैं मार्च में 

जल और वन दिवस  

कविता व गौरैया दिवस 

आनंद और निद्रा दिवस  

और तो और 

सामान्य शिष्टाचार दिवस भी 

कितना कुछ समेटे है अपनी झोली में 

मार्च का यह वासंती मास 

जो बनाता है इसे ख़ासम ख़ास ! 


गुरुवार, फ़रवरी 29

एक लघु कथा

अकेली 


उसकी आँखों से गंगा जमुना बह रही थी। उसने क्या सोचा था और क्या हो गया था। अभी कल तक तो उसका छोटा सा सुखी परिवार था, एक प्यारा सा बेटा, मेधावी पति, जो अपनी ख़ुद की कंपनी खोल रहा था। उसके सास-ससुर भी पास ही रहते थे, उनके साथ भी उसके रिश्ते अच्छे थे। पर आज ऐसा क्या हो गया कि जैसे कोई किसी के घरौंदे को तिनका-तिनका बिखे दे, उसका संसार उजड़ रहा है। उसे याद आया, कॉलेज में वह बहुत सक्रिय थी, खेलकूद और तैराकी की प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी। गाड़ी चलाकर कॉलेज आती थी। उनका प्रेम विवाह हुआ था, पर दोनों के परिवार भी एक-दूसरे को जानते थे सो उनके विवाह में कोई अड़चन नहीं आयी। विवाह के दो वर्षों के भीतर ही वह माँ बन गई, उसका सारा समय बच्चे के साथ बीतने लगा, उसने अपने कैरियर की तरफ़ कोई ध्यान ही नहीं दिया। बेटा जब बड़ा हो गया, उसके पास ख़ाली समय था, पति देव अपने काम में इतने व्यस्त थे कि उसका दिन कैसे बीतता है, इसकी उन्हें कोई खबर नहीं थी। वह उन्हें दफ़्तर छोड़ कर आती, बेटे को स्कूल और जब तक पुत्र की छुट्टी होती, वह ख़ुद कभी किसी मॉल या किसी पुस्तकालय में समय बिताने लगी। ऐसे ही एक दिन उसे वह मिला था, वह एक किताब पढ़कर मुस्कुरा रही थी और वह उसके पास की कुर्सी पर बैठा था। उसने सहज ही पूछा, कौन सी पुस्तक ने आपको इतना मोह लिया है, उसने बताया, और तब ज्ञात हुआ, वह किताब उसने भी पढ़ी है।उनकी बातें चल पड़ीं, फिर तो लगभग रोज़ ही मिलना चलता रहा। न कभी उसने पूछा, वह कौन है, न ख़ुद बताया। दिन हफ़्तों में बदल गये और हफ़्ते महीनों में, अब उनका मिलना कॉफ़ी हाउस में भी होने लगा और एक दिन तो उसने घर आने का निमंत्रण भी दे दिया। उसके पति सुबह निकलते थे तो देर रात ही घर आते थे, पुत्र को स्कूल से लाने में अभी देर थी, उसने सोचा क्यों न घर पर ही चाय पी जाये। जब बात बिगड़नी होती है तो सारे कारण बनते चले जाते हैं, वह रसोई में गई तो उसने पूछा क्या बाथरूम का इस्तेमाल कर सकता है, इशारे से उसे बताकर वह चाय बनाने चली गई, तभी दरवाज़े की घंटी बजी। वह दरवाज़ा खोलने गई, उसके पति ने घर में प्रवेश किया तभी उनके कमरे से वह हाथ पोंछता हुआ आया। वे तीनों सकपका गये। वह कुछ कहती इसके पहले ही जल्दी से नमस्ते कहकर वह घर से निकल गया। पति की आँखों में ज्वाला थी, पर उसने कुछ नहीं कहा और वह भी उल्टे पावों लौट गया। रात तक वह लौटा ही नहीं, फ़ोन भी बंद था।स्कूल से बेटे को भी अपने पिता के घर ले गया। सुबह एक संदेश आया, वह उससे सारे संबंध तोड़ना चाहता है, वह चाहे तो अपनी माँ के घर जा सकती है या वहीं रह सकती है। उसने अपने कुछ घंटों के अकेलेपन को दूर करने के लिए एक मित्र बनाया था, पर अब वह सदा के लिए अकेली थी। 


सोमवार, फ़रवरी 26

कब खुलता यहाँ द्वार तेरा

कब खुलता यहाँ द्वार तेरा 


दिल में ढेरों लिए कामना 

जब कोई याचक आता है, 

‘मैं’ पा लूँगा  परम शक्ति से  

स्वयं को वही भरमाता है !


तब तक नहीं खुला करता है 

द्वार सदा जो खुला हुआ है, 

जब ख़ाली हो मन हर शै से 

तत्क्षण प्रियतम मिला हुआ है !


‘तू’ कहकर जब ढूँढा उसको 

‘मैं’ भी संग हुआ छलता है, 

उसके सिवा न कोई जग में 

सत्य प्रकट पल-पल करता है 


तम से ढका हुआ मन भारी 

बुद्धि चंचला दौड़ लगाये, 

सत के पार विचरता है जो 

कैसे उसकी आहट आये !


एक ही रस्ता एक उपाय 

अर्पण कर सब रहें अमानी, 

जिसने कुछ न चाहा जग में 

‘स्वयं’ की महिमा उसने जानी !


शनिवार, फ़रवरी 24

आर्टिकल ३७०


आर्टिकल ३७० 

 रक्त रंजित था जब कश्मीर 

थमा दिये गये थे पत्थर 

बच्चों-युवाओं के हाथों में 

जो अपने ही वतन के रक्षकों को 

निशाना बनाते थे 

जब चंद लोग निज स्वार्थ की ख़ातिर 

सरहद पार से जा मिले थे 

और उनके नापाक इरादों को 

यहाँ अंजाम देने के मंसूबे पालते थे 

जहन्नुम बना रहे थे जो जन्नत को 

ऐसे में एक जाँबाज़ कश्मीरी लड़की 

और पीएमओ की एक देशभक्त महिला 

उस सपने को पूरा करने का बीड़ा उठाती  हैं 

जो किसी ने बरसों पूर्व देखा था 

आर्टिकल ३७० को हटाने का सपना 

जो कब का हो चुका होता पूरा 

यदि  आड़े न आये होते 

कुछ लोभी राजनेता

कितनी क़ुर्बानियाँ देकर उसे हटाया गया 

एक भटके हुए बेटे को जैसे 

घर वापस लाया गया 

जिसने बना दिया था बेगाना 

अपने ही वतन के एक हिस्से को 

यह फ़िल्म उसी की कहानी है 

जो हर दुनिया के हर नागरिक को सुनानी है 

कश्मीर अब आगे बढ़ रहा है 

हाथ में हाथ डाले भारत के सभी राज्यों के 

तरक़्क़ी की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है 

लाल चौक पर तिरंगा लहराता है 

प्रेम कश्मीरियों के दिल में जगाता है ! 


गुरुवार, फ़रवरी 22

मुक्तेश्वर और जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान

नैनीताल की छोटी सी यात्रा - ३

मुक्तेश्वर और जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान


२१ नंबर 

आज सुबह दस बजे हम मुक्तेश्वर के लिए रवाना हुए। उससे पूर्व रिज़ौर्ट में ही प्रातः भ्रमण किया नदी किनारे एक चट्टान पर स्थित योग कक्ष में प्राणायाम तथा योग साधना की। जल प्रपात, नदी तथा झील की कुछ तस्वीरें उतारीं।आलू-पराँठा और दही का नाश्ता करके आधा घंटा पैदल चल कर, दो बार पहाड़ी नदी पार करके हम उस स्थान पर पहुँचे जहाँ ड्राइवर प्रतीक्षा कर रहा था।

देवदार और चीड़ के वृक्षों से घिरी घुमावदार सड़कों से पद्मपुरी होते हुए हम नैनीताल से लगभग ५१ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुक्तेश्वर धाम पहुँचे। फलों के बगीचों एवं घने जंगलों से घिरे हुए इस स्थान पर भारतीय पशु अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई है। यहीं पर्वत के शिखर पर भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है।​​मंदिर की वास्तुकला विश्व स्तरीय है, इसे भारत के संरक्षित स्मारकों की श्रेणी में रखा गया है। मंदिर में बहुत भीड़ थी।शिव के ५००० वर्ष पुराने मंदिर में स्वयंभू शिव के दर्शन करना अपने आप में एक अनुपम अनुभव था। ऐसी मान्यता भी है कि पाण्डवों ने अज्ञातवास के काल में यहाँ शिव लिंग की स्थापना की थी।इस  मंदिर में हर वर्ष कई महत्वपूर्ण समारोहों और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। निसंतान दंपति यहां संतान की कमाना से आते हैं। एक गाइड हमें मंदिर के निकट स्थित चौली की जाली नामक स्थान दिखाने ले गया। जहां से हिमालय की हिम से ढकी श्रृंखलाओं का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान द्वारा स्थापित एशिया की बड़ी दूरबीन दूर से दिखायी। नाग के फन की आकृति की एक चट्टान अति आकर्षक थी। तत्पश्चात हम घने वृक्षों से भरे हुए वन में भ्रमण करने के लिए रवाना हुए। वापसी में हमने शिवालय रेस्तराँ में दोपहर का भोजन किया। भालू गढ़ झरने में लगभग दो किलोमीटर की रोमांचक पैदल यात्रा करके हम विशालकाय झरने तक पहुँचे। रास्ते में बाँज और बुरांश के जंगल तथा साथ-साथ बहती हुई नदी मन मोह रही थी।काफ़ी ऊँचाई से गिरते हुए जल प्रपात के दृश्य नयनाभिराम थे। होटल वापस लौटे तो शाम के साढ़े पाँच बज गये थे। रिज़ौर्ट में रात्रि में विशेष भोज का आयोजन किया गया था।आग सेंकने का भी इंतज़ाम था, तीन-चार परिवारों का एक समूह भी आ गया था, जिससे रौनक़ बढ़ गई  थी। सबने आग के चारों ओर बैठकर सूप का आनंद लिया और फ़िल्मी गीतों की अंताक्षरी खेली।कल हमें राम नगर होते हुए जिम कार्बेट जाना है। 



२२ नवम्बर 

​​​​सुबह लगभग आठ बजे हम जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के लिए रवाना हुए। मार्ग में कुछ देर के लिए भीमताल पर रुके।नीले रंग के जल वाला त्रिभुज के आकार का यह विशाल ताल तीन तरफ से पर्वतों से घिरा है। ताल में कमल के फूल खिले हुए थे। पांडव काल से संबंध रखने वाली इस झील के मध्य एक टापू है। यहाँ से सिंचाई हेतु छोटी-छोटी नहरें निकली गई है। हमने कुछ तस्वीरें उतारीं और आगे की यात्रा आरंभ की। जिम कॉर्बेट भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय पार्क है, जो बंगाल बाघ की रक्षा के लिए स्थापित किया गया है। जिसके लिए हमने अपनी सफारी टिकट पहले ही बुक कर ली थी। नेट पर पढ़ा, जिम कार्बेट अचूक निशानेबाज थे, साथ ही उन्हें वन्य पशुओं से प्रेम भी था। कुमाऊँ के कई आदमखोर शेरों को  मारकर उन्होंने अनेकों की जानें बचायी थी। गढ़वाल के रुद्रप्रयाग में भी एक आदमखोर शेर को जिम कार्बेट ने मारा था। उनकी अनेक पुस्तकों में से एक पुस्तक 'द मैन ईटर ऑफ रुद्र प्रयाग' है, जो बहुत प्रसिद्ध हुई। 

हमें कुमाऊँ विकास निगम की खुली जीप द्वारा पार्क के मुख्य द्वार ढेला तक ले जाया गया, जहाँ वनविभाग कर्मचारी द्वारा पहचान पत्र की जाँच की गई। आकाश बिलकुल साफ़ था और धूप खिली हुई थी। गेट के पास ही जंगली फूलों पर तितलियाँ मंडरा रहीं थीं। साथ में अनुभवी गाइड भी दिया गया था, जो पशुओं के बारे में कई रोचक जानकारियाँ देता हुआ जा रहा था। उसने बताया जंगल में बाघ, हाथी, भालू, सुअर, हिरन, चीतल, साँभर, तेंदुआ,नीलगाय, आदि अनेक 'वन्य प्राणी' देखने का अवसर मिल सकता है। इसी तरह इस वन में अजगर तथा कई प्रकार के साँप भी निवास करते हैं। यहाँ लगभग ६०० रंग-बिरंगे पक्षियों की जातियाँ भी दिखाई देती हैं।कॉर्बेट नैशनल पार्क को चार जोन में बाँटा गया है। प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही रोमांचक सफर शुरू हो गया। कुछ दूर तक पक्की सड़क के बाद केवल कच्ची पगडंडियों पर ही जीप दौड़ती जा रही थी। पंछियों की मीठी आवाज़ें बरबस लुभा रही थीं। कुछ सुंदर पंछियों के चित्र भी हमारे कैमरे में क़ैद हो गये। एक विशालकाय हॉर्नबिल पक्षी को दिखाने के लिए गाइड ने काफ़ी देर प्रतीक्षा की, जब उसने उड़ान भरी तो उसकी सुन्दर आकृति स्मृति सदा के लिए मन में बस गई। 

हमने अनेक पहाड़ियों, रामगंगा नदी के बेल्ट, दलदलीय गड्ढे, घास के मैदान और एक बड़ी झील​​ के दर्शन भी किए जो जिम कॉर्बेट पार्क की शोभा बढ़ाती है।अब इस पार्क का नाम राम गंगा नेशनल पार्क हो गया है।सूखी हुई घास के मैदान सुनहरे रंग के हो गये थे और दूर क्षितिज में हरी पहाड़ियों के सान्निध्य में अति शोभित हो रहे थे। हमने चितकबरे व सुनहरे हिरणों की कई प्रजातियों को निहारा। जीप को आते देखकर मृग शावक बड़े ही शांत भाव से मुड़कर देखते फिर आगे बढ़ जाते। घने हरे झाड़ों में छिपे हुए वे रामायण के स्वर्ण मृग की याद दिला रहे थे। वृक्षों की डालियों पर बैठे हुए लंगूर तथा वानरों की कई टोलियों ने भी हमारा ध्यान खींचा। उनके परिवार की मंडली एक-दूसरे का ख़याल रख रही थी। अचानक जंगल की निस्तबधता को भंग करती हुई कुछ आवाज़ें गूंजी, तो ड्राइवर रुक गया,गाइड ने बताया, यह टाइगर के निकट होने की निशानी है। बंदर व पक्षी अन्य जानवरों को सचेत  करने  के लिए ऐसी आवाज़ निकलते हैं। लगभग आधा घंटा हम वहीं चुपचाप खड़े रहे, एक दो और सफारी जीपें भी वहाँ आ गयीं। यहाँ सफारी पर आने वाले हर पर्यटक की दिल्ली इच्छा होती है कि कम से कम एक बाघ के दर्शन तो उसे हो जायें, पर शायद आज यह इच्छा पूरी होने वालू नहीं थी। टाइगर बाहर निकलने के बजाय शायद जंगल में भीतर प्रवेश कर गया था। एक-एक करके सभी वाहन चल पड़े और हम मुख्य द्वार से बाहर आ गये। रात को काठगोदम से दिल्ली की हमारी ट्रेन समय पर थी। सुबह मंझला भाई स्टेशन पर लेने आ गया था, स्वादिष्ट नाश्ता करके दोपहर एक बजे एयरपोर्ट के लिए निकले और हवाई यात्रा से देर रात तक बैंगलुरु पहुँच गये। नैनीताल की यह यात्रा एक सुखद स्मृति की तरह मन में बस गयी है।