रविवार, अगस्त 17

वह बात

 वह बात


एक बात जो दिल के करीब है
भिन्न-भिन्न शक्लें इख़्तियार कर लेती है
और घूम-घूम कर आ जाती है
हर बात में शामिल होने
जैसे गायक बार-बार गाता हो
टेक की पंक्ति को
या चित्रकार रचता हो नये-नये चित्र
पर अपनी छोड़े जाता हो हरेक में
या कोई मूर्तिकार झलक जाता हो
उसकी हर मूर्ति में
उसके हर शिल्प में
वह बात चाहे हजार बार कही गयी हो
नई सी लगती है हर बार
जैसे सावन की हर बरसात पहले से अलग होती है
कभी टूट पड़ते हैं बादल
कभी फुहार बनकर धरा का स्पर्श भर करते हैं
कभी तड़-तड़ गिरते हैं संग ओलों के
कभी हवा के संग बस गगन में तिरते हैं
ऐसे ही वह बात है
जो कभी पूरे विश्वास से दोहराई जाती है
कभी इशारा भर होता है उसकी ओर
प्रकटती है कभी आनन्द का गीत बनकर
तो कभी संदेशा लाती है अश्रुओं का
जीवन का प्रतीक ही नहीं
बन जाती है कभी मृत्यु का प्रतीक भी
पूर्णता को प्राप्त नहीं होती
हर बार अधूरी ही रह जाती है
इक बात जो हर बात का आधार है शायद
स्वयं आधारहीन नजर आती है
क्योंकि उसके आते ही लोग इधर-उधर देखने लगते हैं
कभी कोई देखता है घड़ी की ओर
और जम्हाई लेता है कोई
कोई-कोई ही तन्मय हो जाता है
पर उसके चेहरे पर शून्य पसर जाता है
इस वायवीय सी बात पर यकीन करे या नहीं
समझ में नहीं आता
वह बात जो दिल के करीब है....



2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह
    बेहतरीन रचना। सुन्दर बिम्बों से अलंकृत

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  2. आशीष जी, राजीव जी व अभिषेक जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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