बुधवार, नवंबर 30

जागरण


 जागरण 

सोयी हुई देशभक्ति भी 
जाग  रही है दिल में सबके,
खोयी हुई आस्था जागी 
मूल्यों के प्रति हर अंतर में !

तप कर सोना कुंदन बनता 
जनता तप हेतु तैयार,
घण्टों पंक्ति में लगकर भी 
कम न होता दिल में प्यार !

भारत नए दौर में पहुँचा 
नई ऊर्जा नई  लहर है,
पारदर्शिता लेन-देन में 
नई चेतना डगर-डगर है !

 नहीं  रुकेगी यह यात्रा 
अब स्वर्णिम युग की आहट  है 
जो न इसके संग चल रहे 
उन कदमों में घबराहट है !

दुनिया देखे परिवर्तन को  
देश नई करवट लेता है,
नव गति, नव उल्लास समेटे 
'सत्यमेवजयते' गाता  है !






मंगलवार, नवंबर 29

मौन


मौन 

सिमट गयी है कविता 
या छोड़ दिया है खजाना शब्दों का 
उस तट पर 
मंझदार ही मंझदार है अब 
दूसरा तट कहीं नजर नहीं आता 
एक अंतहीन फैलाव है और सन्नाटा 
किन्तु डूबना होगा सागर की अतल गहराई में 
शैवालों  के पार....
जहाँ ढलना है ऊर्जा को सौंदर्य और भावना में 
जीवन की सौगात को यूँ ही नहीं लुटाना है 
कवि के हाथों में जब तक कलम है 
और दिल में शुभकामना है उसे 
वक्त के हर अभिशाप को वरदान में ढालना है !

रविवार, नवंबर 27

घुटने का दर्द

घुटने का दर्द 

उम्र की सीढ़ी चढ़ते चढ़ते 
दर्द की इक सौगात मिली,
जितना जितना किया इलाज 
मर्ज को उतनी हवा मिली 

बचपन का वह कोमल सा तन 
युवा काल का गठा बदन,
प्रौढ़ावस्था भी जाने को 
वृद्ध हुआ न माने मन !

चाल में तेजी वही पुरानी 
नहीं आत्मा कभी बदलती,
शौके-फितरत कायम रहता 
सदा जवां यह भरम पालती !

उसी जुनूँ  ने दर्द दिया यह 
गहरी चोट लगी घुटने में,
चलने-फिरने पर बन्दिश है 
जीवन सिमटा है बस  घर में !

दफ्तर आना-जाना छूटा 
हर दिन ही मानता है संडे,
समय बिताने के सार्थक 
सीख लिए हैं कितने फंडे  !

देह भले न मोबाइल हो 
किन्तु हाथ में मोटोजी  है,
फेसबुक पर हाल बताया 
लाइक  की लंबी  लिस्ट है !

फुर्सत ही फुर्सत है अब तो 
जब भी चाहें तानें लंबी,
घण्टों लैपटॉप पर बैठें 
 मूव न हों पर देखें मूवी !







बुधवार, नवंबर 16

बदल रहा है देश

बदल रहा है देश

लोग निकल रहे हैं घरों से
छोटे-बड़े सब समान होकर खड़े हैं लम्बी-लम्बी कतारों में
जिन्हें एक नहीं कर पाये सद उपदेश और भगवान
उन्हें एक ही कतार में ले आया है इस देश का संविधान
आखिर प्रधानमन्त्री को चुना है जनता ने
उसका संवैधानिक हक है
जनता को जागरूक बनाना
देश से भ्रष्टाचार मिटाना
अब किसी को हिम्मत नहीं होगी
नोटों से भरे तिजोरी
या फिर बेहिसाब कमाई में से करे कर चोरी
अब इस देश का कोई माईबाप है
जिसको देना हर किसी को जवाब है
देश बदल रहा है
हमको भी बदलना है
न कि ‘सब चलता है’ का मन्त्र जपना है
अब यहाँ बेईमानी नहीं चलेगी
अभी तो गंदगी फ़ैलाने वालों की नकेल भी कसेगी
स्वच्छ भारत का सपना अब हकीकत बन रहा है
वाकई देश बदल रहा है !

गुरुवार, नवंबर 3

कविता झुलस रही है

 कविता झुलस रही है 

कविता झुलस रही है उस आग में
लगा रहा है जो कोई सिरफिरा
अनगिनत स्वप्न और निशान नन्हे कदमों के
 दफन हो गये जिसकी राख में
उन कक्षाओं की चहकती आवाजें
खो गयीं जैसे बियाबान में
स्कूल की घंटी से बढ़
क्या हो सकता है कोई गीत किसी बच्चे के लिए
जिसमें गाता है उसका भविष्य
सारी समझ आदमी ने
गिरवी रख दी है जैसे
जो जमीन के एक टुकड़े की खातिर
मार रहा है इंसानियत की जागीर
कितना कठिन है वक्त का दौर
जब मर रहे हैं लोग
और दिखाई जाती है उनकी तस्वीर !