सोमवार, अप्रैल 24

चलों संवारें वसुधा मिलकर



चलों संवारें वसुधा मिलकर 

विश्व युद्ध की भाषा बोले
प्रीत सिखाने आया भारत,
टुकड़ों में जो बांट हँस रहे
उनको याद दिलाता भारत !

एक विश्व है इक ही धरती
एक खुदा है इक ही मानव,
कहीं रक्त रंजित मानवता
कहीं भूख का डसता दानव

विश्व आज दोराहे पर है
द्वेष, वैर की आग सुलगती,
भुला दिए संदेश प्रेम के
पीड़ित आकुल धरा  झुलसती

इसी दौर में मेलजोल  के
पुष्प खिलाने आया भारत,
निज गौरव का मान जिसे है
वही दिलाने आया भारत !

ध्वजा शांति की लहरानी है
विश्व ताकता इसी की ओर,
एक एक भारतवासी को
लानी है सुखमयी वह भोर !

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !

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  2. विश्व गुरु का गौरव ऐसे ही तो नहीं रहा होगा ... इस भूमि इसकी मिटटी में कोई बात है ... अब नहीं तो कब आएगा वापिस ... जागो देश के वासी ... सुन्दर भावमय रचना ...

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