एकांत
उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक
धरा के इस छोर से उस छोर तक
कोई दस्तक सुनाई नहीं देती
जब तक सुनने की कला न आये
वह कर्ण न मिलें
सुन लेते हैं जो मौन की भाषा
जहां छायी है
अटूट निस्तब्धता और सन्नाटा
वहीं गूंजता है
अम्बर के लाखों नक्षत्रों का मौन हास्य
और चन्द्रमा का स्पंदन
मिट जाती हैं दूरियाँ
हर अलगाव हर अकेलापन
जब मिलता है उसका संदेशा
एक अनमोल उपहार सा
और भरा जाता है एकांत
मृदुल प्यार सा !